Bal ka ghamand (Bhim-Hanuman milan)

बल का घमंड (भीम-हनुमान मिलन )

दोस्तों आप लोगों ने महाभारत के बारे में पढ़ा या सुना जरूर होगा। उसी महाभारत के किरदारों में से एक थे भीम, जो अतिबलवान थे इसी कारण उन्हें एक बार घमडं हो जाता है कि  मेरे भुजाओं में सौ हाथियों का बल है मुझे कोई हरा नहीं सकता तथा कैसे हनुमान जी उनका घमंड  तोड़ते हैं आइये हम बताते हैं-
          कौरवों से हारने के बाद बनवास काट रहे पांडव जब बद्रिका आश्रम में जब निवास कर रहे थे तब एक  बहुत ही आकर्षक तथा खुसबू से परिपूर्ण  पुष्प द्रौपदी के पास आ गिरा।  द्रौपदी ने भीम से इसी तरह के सुनदर और आकर्षक पुष्प लाने की इच्छा प्रकट की।  ये पुष्प वो धर्मराज को भेंट देना चाहती थी। भीम उसी दिशा  में चलने लगे जिस दिशा से वो पुष्प आकर गिरा था। चलते-चलते वो गंधमादन पर्वत के एक केले के बगीचे में आ पहुंचे जहाँ उनके भाई पवनसुत हनुमान का वास था। चूँकि भीम पवन देवता के पुत्र कहलाते हैं तथा श्री हनुमान भी पवन पुत्र ही हैं अतः दोनों भाई हुए।  चलते-चलते भीम को रास्ते में एक बन्दर दिखाई पड़ा, जोकि रस्ते में अपनी पूछ पसारे सो रहा था। ये बन्दर कोई और नहीं स्वयं हनुमान जी है थे, हनुमानजी भीम को देखकर तुरंत पहचान लेते हैं परन्तु भीम नहीं पहचान पाते तथा गरजकर बोलते हैं कि मेरे रास्ते से हट जाओ वानर। हनुमान विनम्रता से प्रार्थना रुपी शब्दों में कहते हैं- हे  महाशय! मैं तो दुर्बल एवं वृद्ध बन्दर हूँ मुझे क्यों परेशान  कर रहे हैं आप ही रास्ता बदल लीजिये।भीम पुनः कहते हैं मेरे रास्ते से हट जाओ वानर। हनुमान पुनः कहते हैं मैं अपनी पूँछ  तक हिलाने  में असमर्थ हूँ कृपया करके आप इसे लांघकर ही चले जाइये। भीम पुनः कहते हैं कि  मुझसे  ये पाप नहीं होगा तथा गुस्से  में कहते हैं कि आप अपनी पूँछ  हटा लीजिये नहीं तो मैं आपकी पूछ को उठाकर उधर झटक दूंगा। हनुमान बड़ी विनम्रता से कहते हैं कि आपकी जो इच्छा आप ही हटा दीजिये। भीम गुस्से से झटके से पूँछ हटाने की कोसिस करते हैं तथा लाख प्रयत्न के उपरांत भी पूँछ को तस से मस नहीं कर पाते है ।

उनको अपनी गलती का अहसास होने पर वो हनुमान जी से कहते हे वानर आप कौन हैं कृपा करके अपना परिचय दीजिये। हनुमानजी कहते हैं कि मैं दुर्बल सा एक वृद्ध वानर हूँ सुना है आपकी भुजाओं में  हाथियों का बल है। 
भीम बहुत शर्मिंदा होते हैं तथा उन्हें ज्ञान होता है कि  सतयुग में एक वानर हुआ करता था जिसने  अकेले ही पूरी सोने की लंका को जला दिया था एवं जिसने संजीवनी के लिए पूरे पर्वत को उठा लिया था तथा उसे हिमालय से लंका तक ले आते हैं। भीम उनसे बार-बार आग्रह करते हैं कि कहीं वो वही वानर अर्थात पवनपुत्र हनुमान तो नही हैं। भीम के आग्रह पर वो अपने सतयुग वाले रूप में आ जाते हैं तथा भीम को ये भी बताते हैं कि ये मार्ग उनके लिए उचित नहीं है क्योंकि यहाँ देवताओं का वास है अतः वे वापस आश्रम लौट जाएँ । हनुमानजी भीम को ये आश्वासन देते है कि कौरवों से युद्ध के दौरान वो अर्जुन के रथ पर विराजमान रहेंगे। इतना सुनकर भीम बहुत प्रसन्न होते हैं तथा हनुमान जी को प्रणाम करके आश्रम को  लौट जाते हैं ।

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