varna vichar-वर्ण विचार
वर्ण विचार-varn vichar
भाषा की लघुत्तम इकाई ध्वनि है, जिसे वर्ण अथवा अक्षर कहते हैं। इसलिए भाषा के ज्ञान के लिए सबसे पहले वर्ण(अक्षर) का ज्ञान होना आवश्यक है।
जो लिखित चिन्ह हम प्रत्येक ध्वनि एक वर्ण के लिए निर्धारित करते हैं, वे वर्ण कहलाते हैं; जैसे-
म् + आ + त् + आ - से निर्मित शब्द माता
प् + इ + त् + आ - से निर्मित शब्द पिता
' वह छोटी से छोटी ध्वनि जिसके खंड न हो सके, वर्ण कहलाती है '।
उदहारण- बच्चे खेलते हैं।
यह वाक्य बोलने और लिखने के लिए ध्वनियों (वर्णों) तथा ध्वनि-चिन्हों का प्रयोग किया गया है। इस वाक्य के खंड किये जा सकते हैं। इसमें तीन शब्द प्रयुक्त हुए हैं।
बच्चे + खेलते + हैं।
इन शब्दों के भी खंड किये जा सकते हैं; जैसे -
बच्चे - ब् + अ +च् + च + ए
खेलते - ख् + ए + ल् +अ + त् + ए
हैं - ह् + ऐ + ं
उपर्युक्त खण्डों के और खंड नहीं किये जा सकते। ये सबसे छोटी ध्वनियाँ व्याकरण वर्ण कहलाती हैं।
वर्णमाला
हिंदी भाषा को लिखने में प्रयुक्त होने वाले वर्णों के व्यवस्थित समूह को 'वर्णमाला' कहते हैं।
हिंदी वर्णमाला में उच्चारण के आधार पर वर्णों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा गया है।
1. स्वर 2. व्यंजन
1. स्वर
वे वर्ण जिसका उच्चारण करते समय अन्य ध्वनियों का सहारा नहीं लेना पड़ता, स्वर कहलाते हैं। स्वरों का उच्चारण करते समय बिना किसी रुकावट के मुख से वायु (हवा) निकलती है। हिंदी वर्णमाला में कुल ग्यारह (११) स्वर होते हैं। अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ ऋ
'ऋ' स्वर का प्रयोग संस्कृत शब्दों में ही किया जाता है। जैसे- ऋषभ, ऋषि, ऋतु आदि। उच्चारण की दृष्टि से 'ऋ' 'रि' की तरह ही बोला जाता है। लेखन में यह 'ऋ' तथा ' ृ' की तरह ही लिखा जाता है। इसके प्रयोग में सावधानी भी बरतने की आवश्यकता है क्योकि 'ऋ' की मात्रा नीचे 'ृ' की तरह लगती है तथा नीचे लगने वाले 'र' ( , ) से भिन्न है जैसे - गृह,ग्रह आदि।
स्वर के भेद
स्वरों का उच्चारण करने में लगे समय के आधार पर उनके तीन भेद होते हैं -
(क). ह्रस्व स्वर (ख). दीर्घ स्वर (ग). प्लुत स्वर
(क) ह्रस्व स्वर :- वे स्वर जिनके उच्चारण में सबसे कम समय लगता है, ह्रस्व स्वर कहलाते हैं। ये कुल चार हैं -
अ इ उ ऋ
(ख) दीर्घ स्वर :- वे स्वर जिनके उच्चारण में ह्रस्व स्वरों की तुलना में दुगुना समय लगता है, दीर्घ स्वर कहलाते है। ये कुल सात है -
आ ई ऊ ए ऐ ओ औ
(ग) प्लुत स्वर :- वे स्वर जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वरों की तुलना में अधिक समय लगता है, प्लुत स्वर कहते हैं। ऐसे स्वरों के निर्देश के लिए उनके मध्य '३' लिख देते हैं। जैस - ॐ (ओ३म्)
स्वरों की मात्राएँ
स्वरों का प्रयोग जब व्यंजनों के साथ किया जाता है तब इनकी केवल मात्राएँ ही लगाई जाती हैं। किसी के उच्चारण में लगने वाले समय को मात्रा कहते हैं। स्वरों की मात्राएँ इस प्रकार हैं।-
स्वर मात्रा चिन्ह मात्रा प्रयोग उदाहरण
अ - क् + अ = क कल,कर
आ ा क् + आ = का कल,काजल
इ ि क् + इ = कि किताब
ई ी क् + ई = की कीमत
आ ा क् + आ = का कल,काजल
इ ि क् + इ = कि किताब
ई ी क् + ई = की कीमत
उ ु क् + उ = कु कुल,कुआँ
ऊ ू क् + ऊ = कू कूप
ऋ ृ क् + ऋ = कृ कृषि,कृपया
ए े क् + ए = के केश,केशव
ऐ ै क् + ऐ = कै कैद
ओ ो क् + ओ = को कोयल
औ ौ क् + औ = कौ कौआ
विशेष-
ऊ ू क् + ऊ = कू कूप
ऋ ृ क् + ऋ = कृ कृषि,कृपया
ए े क् + ए = के केश,केशव
ऐ ै क् + ऐ = कै कैद
ओ ो क् + ओ = को कोयल
औ ौ क् + औ = कौ कौआ
विशेष-
- 'अ' की कोई मात्रा नहीं होती ।
- सब व्यंजन 'अ' की सहायता से ही बोले जाते हैं।
- किसी व्यंजन में यदि 'अ' स्वर नहीं मिला होता है तू उसके नीचे तिरछी रेखा हलंत लगा देते हैं।
- र के साथ उ की मात्रा लगाने से रु बनता है।
- र के साथ ऊ की मात्रा लगाने से रू बनता है।
- हिंदी में प्रयुक्त होने वाले अंग्रेजी के कुछ शब्दों में केवल चंद्र ध्वनि का प्रयोग किया जाता है जैसे कॉलेज, बॉल, कॉल आदि। केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने भी स्वरों में सम्मिलित करने की सलाह दी है। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी, अरबी, फारसी के प्रभाव के कारण ज वर्णों का भी प्रयोग हिंदी भाषा में किया जाता है।
अयोगवाह
हिंदी वर्णमाला में तीन अन्य वर्ण भी प्रयुक्त होते हैं जो न तो स्वर है और न ही व्यंजन । इन्हें अयोगवाह करते हैं। यह वर्ण निम्नलिखित हैं -
(क). अनुनासिक (ख). अनुस्वार (ग). विसर्ग
(क) अनुनासिक :- मुख से बोले जाने वाले स्वरों को उनके मूल रूप में ही लिखा जाता है; जैसे की 'आम' शब्द में आ लिखा गया है; लेकिन स्वर जब नाक से बोले जाते हैं तो उन्हें अनुनासिक कहा जाता है और उनके ऊपर चंद्रबिंदु ( ँ ) लगाया जाता है, जैसे- चाँद,मुँह आदि।
(ख) अनुस्वार :- अनुस्वार का उच्चारण नासिका से होता है। मात्रा होने के कारण यह स्वरों के साथ लिखा जाता है किन्तु यह व्यंजन के प्रथम पांच वर्गों के अंतिम अक्षर का स्वररहित रूप है। यह पंचम वर्णों के स्थान पर प्रयुक्त होता है। संयुक्त व्यंजन के रूप में पंचम वर्ग के किसी व्यंजन के पहले जुड़ता है, तब उसे अनुस्वार द्वारा लिखा जाता है। जैसे- रंग(रङ्ग), मंच(मञ्च), घंटी(घण्टी), आनंद(आनन्द) आदि।
- जब दो पंचम वर्ण साथ होते हैं तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता, जैसे-अन्त,जन्म आदि।
- य, व, ह, से पहले अनुस्वार का प्रयोग नहीं किया जाता, यहाँ पंचम वर्ण ही प्रयोग किया जाता है। जैसे -अन्य, पुण्य, इन्हें, कन्हैया आदि।
- श,ष, स से पहले अनुस्वार नहीं लगाया जाता है जैसे- अंश,वंश, कंस, हंस आदि, 'सम्' उपसर्ग से बने हुए शब्दों में 'म्' के स्थान पर अनुस्वार ( ं) लगाया जाता है; जैसे- सम् + वाद = संवाद
- शिरोरेखा के ऊपर मात्रा लगे शब्दों में अनुनासिक (ँ) की जगह अनुस्वार ( ं) लगाया जाता है; जैसे - मैं, क्यों आदि
(ग) विसर्ग :- इस ध्वनि का उच्चारण 'ह्' के समान होता है और इसे दो बिंदियों ( ः ) के रूप में लगाया जाता है। विसर्ग का प्रयोग सामान्यतया तत्सम शब्दों में होता है; जैसे- प्रातः, मूलतः, अतः आदि।
2. व्यंजन
स्वरों की सहायता से बोले जाने वाले जिन वर्णों का उच्चारण करते समय प्राणवायु, मुख से अलग-अलग स्थानों पर रुक-रूककर निकलती है, वे व्यंजन कहलाते हैं। हिंदी वर्णमाला में कुल तैंतीस व्यंजन हैं।
व्यंजन के भेद
उच्चारण के आधार पर व्यंजन के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं-
(क) स्पर्श व्यंजन (ख) अंतःस्थ व्यंजन (ग) ऊष्म व्यंजन
(क) स्पर्श व्यंजन :- इनके उच्चारण में एक अवयव जब दूसरे अवयव को छूता है तो निकलने वाली वायु को स्पर्श व्यंजन कहते हैं। स्पर्श व्यंजन संख्या में को पच्चीस होते हैं जो पांच वर्गों में विभाजित हैं-
(क वर्ग ) क् ख् ग् घ् ङ्
(च वर्ग ) च् छ् ज् झ् ञ्
(ट वर्ग ) ट् ठ् ड् ढ् ण् ( ड़ ढ़)
(त वर्ग ) त् थ् द् ध् न्
(प वर्ग ) प् फ् ब् भ् म्
विशेष :- ड़ और ढ़ क्रमशः ड् और ढ् व्यंजनों से विकसित हुए हैं। इनका उच्चारण स्थान मूर्द्धा है,इन्हे उत्क्षिपत या रूढ़ व्यंजन कहते हैं।
(ख) अंतःस्थ व्यंजन :- वे व्यंजन जो प्राण-वायु के अवरोध की दृष्टि से स्वरों एवं व्यंजनों के मध्य की स्तिथि में आते हैं; अर्थात जिन व्यंजनों को बोलने में हवा बहुत कम रूककर बहर निकलती है, अंतःस्थ व्यंजन कहलाते हैं। ये संख्या में कुल चार हैं -
(क वर्ग ) क् ख् ग् घ् ङ्
(च वर्ग ) च् छ् ज् झ् ञ्
(ट वर्ग ) ट् ठ् ड् ढ् ण् ( ड़ ढ़)
(त वर्ग ) त् थ् द् ध् न्
(प वर्ग ) प् फ् ब् भ् म्
विशेष :- ड़ और ढ़ क्रमशः ड् और ढ् व्यंजनों से विकसित हुए हैं। इनका उच्चारण स्थान मूर्द्धा है,इन्हे उत्क्षिपत या रूढ़ व्यंजन कहते हैं।
(ख) अंतःस्थ व्यंजन :- वे व्यंजन जो प्राण-वायु के अवरोध की दृष्टि से स्वरों एवं व्यंजनों के मध्य की स्तिथि में आते हैं; अर्थात जिन व्यंजनों को बोलने में हवा बहुत कम रूककर बहर निकलती है, अंतःस्थ व्यंजन कहलाते हैं। ये संख्या में कुल चार हैं -
य् र् ल् व्
(ग) ऊष्म व्यंजन :- वे व्यंजन जिनको बोलने में मुख से गर्म हवा निकलती है, ऊष्म व्यंजन कहलाते हैं। ये संख्या में कुल चार हैं-
श् ष् स् ह्
वर्णों के उच्चारण स्थान
वर्णों का उच्चारण करते समय मुख के कई भाग सक्रिय होते हैं। ये अवयव हैं- जिव्हा, कंठ, तालु, मूद्ध, दन्त, ओष्ठ आदि। किसी वर्ण के उच्चारण में जो अवयव विशेष रूप से सक्रिय होता अर्थात जिव्हा मुख के जिस भाग को स्पर्श करती, वही उस वर्ण का उच्चारण-स्थान कहलाता है।
उच्चारण-स्थान उच्चारित वर्ण नाम
कण्ठ अ, आ, क वर्ग, ह और विसर्ग कण्ठ्य
तालु इ, ई, च वर्ग, य और श तालव्य
मूर्द्धा ऋ, ट वर्ग, र, ड़, ढ और ष मूर्धन्य
दन्त त वर्ग, ल और स दन्त्य
ओष्ठ उ, ऊ और प वर्ग ओष्ठ्य
नासिका ङ, ञ, ण, न, म और अनुस्वार नासिक्य
कंठ-तालु ए, ऐ कंठ-तालव्य
कंठ-ओष्ठ ओ, औ कंठ-ओष्ठ्य
दन्त-ओष्ठ व दन्तोष्ठ्य
विशेष :- उर्दू-फारसी शब्दों के शुद्ध उच्चारण की दृष्टि से कुछ वर्णों के नीचे बिंदु(नुक्ता) लगाकर; जैसे- क़ (क़यामत),ख़(ख़रबूजा), ग़(ग़ैरत), ज़(ज़ुल्म),फ़(फ़ौरन) लिखने का भी प्रचलन चला है। इनमे ज़, फ़ का उच्चारण-स्थान दन्तोष्ठ्य है तथा क़, ख़, ग़ का उच्चारण स्थान जिव्हा-मूल (गले के थोडा नीचे) है।
संयुक्त व्यंजन
दो से अधिक भिन्न व्यंजन जब आपस में मिल जाते हैं, तो उन्हें संयुक्त व्यंजन कहा जाता है। दो व्यंजन के मिलने से इनका रूप भी बदल जाता है; जैसे -
क् + ष् = क्ष (पक्ष, कक्ष, दक्ष)
त् + र् = त्र (मित्र, शत्रु, पत्र)
ज् + ञ् = ज्ञ (ज्ञान, विज्ञान, यज्ञ)
श् + र् = श्र (श्रम, श्रमिक, श्रवण)
संयुक्त 'र' के प्रचलित रूप :- संयुक्त 'र' के तीन प्रचलित रूप होते हैं। जब 'र' व्यंजन किसी वर्ण से मिलता है तो उसका रूप (र्र) होता है और वह अपने साथ जुड़ने वाले अगले वर्ण के ऊपर लगता ह; जैसे-
र् + म् = र्म (कर्म, मर्म,शर्म)
र् + य् = र्य (कार्य, सौंदर्य)
जब किसी आधे व्यंजन में पूरा 'र' मिलता है तो उसके दो रूप होते हैं जैसे-प्र और ट्र
क् + र = क्र (क्रम,श्रम,प्रेम)
ट् + र = ट्र (ट्रैक्टर,ट्राली,ट्रक)
द्वित्व व्यंजन :- एक ही व्यंजन का जब दो बार प्रयोग होता है, तो उसे द्वित्व व्यंजन कहते हैं; जैसे-
त् + त् = त्त (पत्ता, भत्ता)
च् + च् = च्च (बच्चा, कच्चा)
वर्ण विच्छेद :- किसी शब्द के वर्णों को जब अलग-अलग करके लिखा जाता है, तो उसे वर्ण-विच्छेद कहते हैं; जैसे-
व् + इ + द् + य् + आ + ल् + अ + य् + अ (विद्यालय)
भ् + आ + र् + अ + त् + ई + य् + अ (भारतीय)
व् + इ + ज + ञ + आ + न् + अ (विज्ञान)
❤❤❤❤ धन्यवाद❤❤❤❤
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