Char moorkh pandit

चार मूर्ख पंडित(विद्वान) (पंचतंत्र की कहानियााँ)-char moorkh pandit (panchtantra ki kahaniyan)
 एक राजा के तीन पुत्र थे, तीनों अत्यंत मूर्ख थे। उनकी ऊटपटांग हरकतों से राजा बाज आ चुका था। वे तीनों जंगल में जाते तो फल तोड़कर गूदा व रस फेंक देते थे तथा गुठलियां तोड़कर खाने लगते थे। राजा काफी चिंतित रहता था की आने वाला राज्य का उत्तराधिकारी  कैसा होगा, ये तीनों तो अत्यंत मूर्ख हैं। एक दिन वह आचार्य विष्णुशर्मा को बुलाकर उनसे कहता है की मेरे इन तीनो पुत्रों को अच्छी शिक्षा-दीक्षा देकर उत्तराधिकारी  योग्य बनाइये मैं आपको पचास गाँव दक्षिणा स्वरूप भेंट दूंगा। 
     आचार्य विष्णुशर्मा उन तीनों राजकुमारों को लेकर  जंगल अपने आश्रम आते हैं। आचार्य  उन तीनों राजकुमारों को प्रतिदिन शाष्त्र एवं शस्त्र विद्या,वेद-पुराण व उपनिषदों का ज्ञान देते तथा हितोपदेश एवं पंचतंत्र की कहानियां सुनते  थे। एक दिन आचार्य उन्हें एक कहानी सुनाते हैं जो इस प्रकार है -
     एक गांव में एक  ब्राह्मण के चार पुत्र थे। उन चारों में से तीन अत्यंत विद्वान थे व चौथा थोड़ा कम विद्वान्  परन्तु विवेकशील था। एक दिन चारो ब्राह्मणपुत्र किसी अन्य नगर जाकर धनोपार्जन करने का विचार बनाने लगे। अगले दिन वे अपने पिता से आज्ञा लेकर नगर की ओर निकल पड़े। नगर की ओर रास्ते में एक घना जंगल पड़ता है। चारो विद्वान उस जंगल के रास्ते से होकर नगर की तरफ चलने लगते हैं। जंगल के बीचो-बीच उन्हें एक मृत शेर की  बिखरी हुई हड्डियां  दिखायी पड़ती हैं । चारो उसके करीब आते हैं तथा उनमें तीन विद्वानों ने शेर को अपने विद्या  के प्रभाव से पुनर्जीवित करने का निश्चय किया। परन्तु चौथे विद्वान ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया और कहा की यह शेर जीवित होते ही हम चारों को मारकर खा जायेगा। उन तीनों ने उससे कहा की तुम्हारे अंदर क्षमता नहीं है इसलिए ऐसा करने से मना कर रहे हो, वैसे भी अगर शेर हमें मारने की कोशिश करेगा तो हम उसे अपनी विद्या के प्रभाव से पुनः मार देंगे।
इतना कहते ही उनमेें से एक विद्वान् शेर की हड्डियां इकठ्ठा करके अस्थिपंजर(हड्डियों का ढांचा) तैयार कर देता हैं तथा दूसरा विद्वान अपनी विद्या के प्रभाव से उस अस्थिपंजर पर मांस एवं चमड़ा लगाकर शेर का रूप दे देता है। अब आती है तीसरे  विद्वान की बारी जो उस मृत शेर में प्राण डालकर उसे पुनर्जीवित करने जाता है। चौथा विद्वान एक बार फिर समझाता है की वे ऐसा न करे अन्यथा शेर जीवित होते ही हम सब को मारकर खा जाएगा। परन्तु वे उसकी बात नहीं मानते हैं और शेर को पुनर्जीवित करने लगते हैं। चौथा विद्वान आग्रह करता है कि एक बार उसे किसी पेड़ पर चढ़ जाने दें फिर इस शेर को जीवित करना। वे तीनों चौथे विद्वान ब्राह्मण पुत्र की बात मन लेते हैं और उसे किसी पेड़ पर चढ़ने के बाद ही शेर को जीवित करने का निश्चय करते हैं। चौथा विद्वान झट से पास के पेड़ पर चढ़ जाता है तथा उन चारों से शेर को पुनर्जीवित करने को कहता है। तीसरा विद्वान अपनी विद्या के प्रभाव से उस शेर को पुनर्जीवित कर देता है। शेर जीवित होते ही अपने सामने तीन मनुष्यों को देखता है  तो जोर से गर्जना करता है तथा अपनी पूँछ हवा में लहराता है।  दखते ही देखते वह तीनों विद्वानों को मारकर खा जाता है और वहां से चला जाता है। चौथा विद्वान जोकि पेड़ पर चढ़ गया था वो बच जाता है तथा पेड़ से उतरकर नगर की तरफ चला जाता है।
   'इससे हमें यही सीख हमें कभी भी विद्या का घमंड नहीं करना चाहिए' 
-UP BOARD के कक्षा ४ के हिंदी  पाठ्यक्रम में संकलित पाठ २ पंचतंत्र की कहानियां 

❤❤धन्यवाद❤❤ 











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