shatbuddhi sahastrabuddhi katha

शतबुद्धि - सहस्त्रबुद्धि कथा 

आज हम आपको दो ऐसी मछलियों के बारे में बताएँगे जो अपनी बुद्धि के अभिमान के कारण दो मछुआरों द्वारा पकड़ ली जाती हैं तथा वहीं एक मेढ़क अपनी चतुरता से अपनी जान बचने में सफल हो जाता है।
    किसी जलाशय में शतबुद्धी और सहस्त्रबुद्धि नाम की दो मछलियां रहती थीं।  उनकी एकबुद्धि नाम के एक मेंढक से मित्रता हो जाती है।  एक दिन दो मछुआरे उस तालाब पर आते हैं। उनमें  से एक मछुआरा कहता है कि मित्र इस तालाब में ढेर सारी मछलियाँ हैं क्यूँ न हम कल सवेरे इसमें जाल डालें। दूसरा मछुआरा कहता है हाँ मित्र हम कल ही इस जलाशय में जाल डालेंगे।

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दोनों मछुआरों की  बात मेंढक ध्यानपूर्वक सुन रहा था। मेंढक मछुआरों की बात मछलियों को बताता है, मछलियां कहती हैं की संसार में सर्पों और दुष्टों का अभिप्राय  कभी सफल नहीं होता है। वैसे भी हम अपनी बुद्धि  से अपनी और तुम्हारी जान बचा लेंगी। मेंढक कहता है आप दोनों तो शतबुद्धि (सौ बुद्धि वाली) और सहस्त्रबुद्धि(एक हज़ार बुद्धि वाली ) हो। अतः आप दोनों तो बच जाओगी। मैं तो एकबुद्धि वाला हूँ मैं कैसे बचूंगा आप मेरी चिंता छोड़ो और चलो किसी दूसरे जलाशय में जाते हैं नहीं तो वो मछुआरे हमें पकड़ लेंगे। 
मेंढक के बार बार कहने  पर भी मछलियां उसकी बात नही मानती और जलाशय नहीं छोड़कर जाने को कहती हैं।  मेंढक उस जलाशय को छोड़कर किसी अन्य जलाशय में चला जाता है।  अगले दिन सुबह दोनों मछुआरे आते हैं और जलाशय  जाल डाल देते हैं। मछुआरे शतबुद्धि -सहस्त्रबुद्धि के आलावा ढेर सारी मछलियां और केकड़े पकड़कर ले जाते हैं। सभी मछलियों को तेज चिलचिलाती धूप में  जाते हुए मछुआरों को देख एकबुद्धि मेंढक अपनी पत्नी से कहता है की- शतबुद्धि सिर पर है और सहस्त्रबुद्धि कंधे से लटक रही है परन्तु मैं एकबुद्धि होकर भी इस शीतल जल में क्रीड़ा कर रहा हूँ। 
   "इस कहानी से  हमें  यही सीख मिलती है  कि  हमें  अपनी  बुद्धि  पर कभी घमंड नहीं करना चाहिये 

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