bhasha lipi aur vyakaran
भाषा, लिपि और व्याकरण-bhasha lipi aur vyakaran
भाषा, लिपि और व्याकरण
भाषा शब्द 'भाष ' धातु से बना है। इसका अर्थ है बोलना। जब हम बोलकर अथवा लिखकर अपने विचारों को प्रकट करते हैं तो उसे भाषा कहते हैं। भावों और विचारों को ध्वनियों या चिन्हों के माध्यम से जब हम व्यक्त करते हैं, उस साधन को हम भाषा कहते हैं।
'भाषा ध्वनि चिन्हों की वह व्यवस्था है, जिसके माध्यम से मनुष्य परस्पर अपने विचारों का अदान -प्रदान करते हैं ' ।
भाषा की विशेषताएं
- भाषा का मुख्य उद्देश्य विचारों का आदान-प्रदान है।
- भाषा मानव- मुख से उच्चारित होती है।
- हर भाषा की ध्वनि भिन्न होती है।
- भाषा की ध्वनियों के मेल से शब्दों का निर्माण होता है।
- भाषा शब्दों तथा वाक्यों की व्यवस्था होती है।
- भाषा का आधार वाक्य होते हैं।
- भाषा अपना रूप बदलती है।
- भाषाओँ के अनेक प्रकार होते हैं।
- भाषा बाह्य तत्वों से प्रभावित होती हैं।
भाषा के रूप
भाषा के दो रूप होते हैं, 1. लिखित भाषा 2. मौखिक भाषा
1. लिखित भाषा :- लिखित का अर्थ है लिखा हुआ। जब हम किसी साधन द्वारा लिखकर अपने विचार प्रकट करते हैं तो उसे भाषा का 'लिखित रूप' कहते हैं। लिखित रूप से ज्ञान तथा विचारों को स्थाई रूप प्रदान किया जा सकता है।
' लिखकर प्रकट किये गए विचारों को भाषा का लिखित रूप कहते हैं '।
2. मौखिक भाषा :- मौखिक का अर्थ है मुख से उच्चारित। जब हम बोलकर अपने विचार प्रकट करते हैं, उसे भाषा का 'मौखिक रूप' कहते हैं।कहनी सुनना, समाचार सुनना, कविता या गाना सुनना जैसे समस्त कार्य मौखिक भाषा के अंतर्गत आते हैं।
' बोलकर विचार प्रकट करना मौखिक भाषा कहलाती है '।
हिंदी भाषा
हिंदी आज संपूर्ण भारत की संपर्क भाषा बन गयी है। संसार के मानचित्र पर हिंदी का विकास अंतर्क्षेत्रीय भाषा, राष्ट्रभाषा, राजभाषा, संपर्क भाषा और अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हो रहा है। यह भाषा पूरे विश्व की शिक्षा-व्यवस्थाओं मेँ महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुकी है।
१४ सितंबर, १९४९ को अनुच्छेद ३४३ में हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया। इसलिए प्रत्येक वर्ष १४ सितम्बर को 'हिंदी - दिवस ' भी मनाया जाता है।
बोली
बोली से तात्पर्य है जिसे बोला जाए। यह छोटे क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा का स्थानीय रूप है यह भाषा का ऐसा रूप है जो कुछ दूरी होने पर ही अपना रूप बदलती रहती है। भाषा का क्षेत्र विस्तृत होता है, जबकि बोलियां एक छोटे क्षेत्र तक ही सीमित रहती हैं।
ब्रजभाषा को सूरदास ने, अवधी को तुलसीदास ने और मैथिली को विद्यापति ने चरमोत्कर्ष पर पहुचाया। हिंदी में 'खड़ी' का बहुत योगदान रहा है। महात्माा गाँधी, लोकमान्य तिलक, स्वामी दयानन्द सरस्वती, सुभाषचंद्र बोस आदि नेताओं ने हिंदी या अन्य भाषाओँ का अधिकाधिक प्रयोग करके इसे बढ़ावा दिया है।
' सीमित क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा बोली कहलाती है '।
उपभाषा
बोली का विकसित रूप उपभाषा कहलाती है। उपभाषा का क्षेत्र बोली से अधिक होता तथा इसमें साहित्य- रचना होती है। उपभाषा का लिखित रुप भी पाया जाता है।
वैसे तो हिंदी का प्रयोग पूरे भारत में होता, लेकिन यह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश तथा दिल्ली में अधिक बोली जाती है। क्षेत्र की दृष्टि से हिंंदी को निम्न उपभाषाओं में बांटा गया है।
1. पूर्वी हिंदी 2. पहाड़ी 3. राजस्थानी 4. बिहारी 5. पश्चिमी हिंदी
1. पूर्वी हिंदी :- इसमें अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी आती हैं। तुलसीदास की 'रामचरितमानस ' की रचना अवधी भाषा में ही की गयी है।
2. पहाड़ी :- इसमें हिमाचली, कुमाऊँनी तथा गढ़वाली उपभाषाएँ आती हैं।
3. राजस्थानी :- जयपुरी, मेवाती, बागड़ी, मारवाड़ी तथा मालवी आदि उपभाषाएँ इस वर्ग में आती हैं।
4. बिहारी :- मगही, भोजपुरी और मैथिली इस वर्ग की उपभाषाएँ हैं।
5. पश्चिमी हिंदी :- इसमें खड़ी बोली, ब्रजभाषा, बुँदेली, हरियाणवी, कन्नौजी, आती हैं। दिल्ली, मेरठ के आस-पास बोली जाने वाली भाषा खड़ी बोली कहलाती है। कृष्णभक्ति काव्य की रचना 'ब्रजभाषा' में की गयी है।
लिपि
भाषा के लिखित रूप का आधार लिपि है। लिपि का अर्थ है लिखना या चित्रित करना। भाषा में आई ध्वनियों के लिए लिखित चिन्ह निर्धारित किये गए हैं। ये चिन्ह प्रत्येक भाषा के अनुसार भिन्न-भिन्न होते हैं। इन्हे ही लिपि कहा जाता है।
'भाषा में प्रयोग होने वाली ध्वनियों को लिखने के लिए निश्चित किये गए चिन्हों को लिपि कहते हैं '।
प्रत्येक भाषा की लिपि भिन्न होती है। परन्तु कुछ भाषाओं की ध्वनियाँ भिन्न होने पर भी उनकी लिपि समान होती है। जैसे- हिंदी, संस्कत, मराठी, नेपाली आदि भाषाओ को देवनागरी लिपि में लिखा जाता हैं।
प्रमुख भाषाएँ एवं लिपियाँ
विदेशी भाषा भारतीय भाषा
भाषा लिपि भाषा लिपि भाषा लिपि भाषा लिपि
पश्तो अरबी जर्मन रोमन मराठी देवनागरी असमी बांग्ला
नेपाली देवनागरी फ्रेंच रोमन तमिल तमिल हिंदी देवनागरी
अंग्रेजी रोमन इटली रोमन गुजराती गुजराती उर्दू अरबी
ग्रीक ग्रीक टर्की रोमन बांग्ला बांग्ला संस्कृत देवनागरी
जापानी हीरागाना कोरियाई हाँजा पंजाबी गुरुमुखी गोवा कोकणीं
व्याकरण
भाषा के मानक रूप को समझने के व्याकरण का ज्ञान होना अति आवश्यक है। व्याकरण वह शास्त्र है जो भाषा का विश्लेषण करके उसके प्रयोग के नियम निर्धारित करता है।
व्याकरण का अर्थ है - विश्लेषण करना।
व्याकरण में भाषा - रचना तथा प्रयोग सम्बन्धी नियमों का संकलन तथा व्याख्या की जाती है। भाषा का शुद्ध रूप ही सर्वसम्मत होता है तथा उसे मानक भाषा कहा जाता है।
जैसे - स्वयं अपना करो काम। अपना काम स्वयं करो।
'भाषा के नियमों तथा व्यवस्था का ज्ञान कराने वाला शास्त्र व्याकरण कहलाता है '।
व्याकरण के अंग
व्याकरण के अंग
व्याकरण के तीन अंग होते हैं-
१. वर्ण विचार २. शब्द विचार ३. वाक्य विचार
१. वर्ण विचार :- वर्ण विचार के अंतर्गत वर्णों के भेद, आकार, उच्चारण, उत्पत्ति तथा उनके मेल आदि पर विचार किया जाता है।
२. शब्द विचार :- शब्द विचार के अंतर्गत शब्दों के भेद, रूप, उत्पत्ति,रचना, रूपांतर, बनावट, लिंग,वचन, काल आदि पर विचार किया जाता है।
३. वाक्य विचार :- इसके अंतर्गत वाक्य-रचना, भेद, अन्वय, विश्लेषण, संश्लेषण तथा विराम चिह्न आदि के बारे में विचार किया जाता है।
साहित्य :- किसी भी भाषा के ज्ञान के संचित कोष को साहित्य कहते हैं।
साहित्य में अपनी बात प्रायः दो प्रकार से कही जा सकती है-
- गद्य रूप में इसका प्रयोग कहानी, निबंध, नाटक,नाटक, पत्र आदि के रूप में किया जाता है।
- पद्य रूप में इसका प्रयोग कविता, गीतों, छोटी-छोटी रचनाओं आदि में किया जाता है।
⧭⧭धन्यवाद ⧭⧭
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