sangya ke vikar ling, vachan, karak -part (2)

संज्ञा के विकार- लिंग, वचन, और कारक भाग -२ , sangya ke vikar ling, vachan, karak -part (2)

वचन

वचन व्याकरण में संज्ञा या सर्वनाम की संख्या बताने का काम करता है; जैसे-
   लड़की ने खाना ने खाया।                         लड़कियों ने खाना ने खाया।
   एक चिड़िया घोंसले में बैठी है।                  अन्य चिड़ियाँ डाल पर बैठी हैं। 
'चिड़िया' तथा 'लड़की' संज्ञा शब्दों से उनकी संख्या एक होने का पता चलता है। 'चिड़ियाँ' तथा  'लड़कियों' शब्द से उनकी संख्या एक से अधिक होने का बोध हो रहा है।  वचन से संज्ञा पदों का एक या एक से अधिक होना ज्ञात होता है। 
वचन के भेद:-   वचन के दो भेद होते हैं -      १. एकवचन                  २. बहुवचन 
हिंदी भाषा के अंतर्गत जो संख्या में एक हो एकवचन तथा जो संख्या में एक से अधिक हो, वह बहुवचन कहलाता है; जैसे -      तितली - तितलियाँ          बिल्ली -  बिल्लियां               कली- कलियाँ 

वचन की पहचान 
वचन की पहचान दो तरह से होती है -
1. संज्ञा तथा सर्वनाम                                     2. क्रिया द्वारा
1. संज्ञा तथा सर्वनाम द्वारा :- वाक्य में संज्ञा और सर्वनाम का प्रयोग जिस वचन में होता है उससे वचन की पहचान होती है; जैसे - 
लड़की बैठी है।                    लड़कियां बैठी हैं।                              वह घर जाएगा। 
वे घर जायेंगे।                     मैं आ गया।                                      हम आ गए। 
 2. क्रिया द्वारा :- संज्ञा शब्दों का रूप एकवचन तथा बहुवचन दोनों में एक सा रहता है।  इस प्रकार के  शब्दों का वचन जानने के लिए क्रिया पदों का रूप देखना पड़ता है; जैसे -
 मोर नाच रहा है।                                    मोर नाच रहे हैं। 
 'नाच रहा है' से संज्ञा पद के एकवचन  तथा 'नाच रहे हैं' से बहुवचन होने का बोध होता है। इसमें संज्ञा पद दोनों ही वचनों में समान आया है तथा क्रिया शब्दों से वचन का बोध हो रहा है। 
एकवचन शब्दों का बहुवचन में प्रयोग -
हिंदी भाषा अनेक बार एकवचन शब्दों  प्रयोग बहुवचन के रूप में प्रयोग किया जाता हैं; जैसे- 
1. आदर व्यक्त करने के लिए भी प्रायः एकवचन के स्थान पर बहुवचन के स्थान पर बहुवचन का प्रयोग किया जाता है; जैसे - नानी जी  मुंबई पहुंच गयी होंगी।                        शांत हो जाओ, गुरूजी आ रहे हैं। 
2. अभिमान या बड़प्पन जताने के लिए भी प्रायः एकवचन (मैं) के स्थान पर बहुवचन (हम) का प्रयोग किया जाता है; जैसे - बेटे, हम तुम्हारे शुभचिंतक हैं।                              हम जो कह रहे हैं उसे मान लो। 
3. सदा बहुवचन में प्रयोग किये जाने वाले शब्द-हिंदी भाषा में ऐसे बहुत से शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिनके लिए क्रिया का प्रयोग सदैव बहुवचन में किया जाता है; जैसे -
आज तो आपके दर्शन हो ही गए।                     सभा में काफी श्रोता उपस्थित थे। 
रिया के बाल बहुत लम्बे हैं।                             प्रधानाचार्य जी ने प्रमाण-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। 
बहुवचन के स्थान पर एकवचन का प्रयोग
1. भाववाचक संज्ञाएँ सदा एकवचन में प्रयुक्त होते है; जैसे -
इस चीनी में मिठास काम है।                                 गाँधी जी हमेशा सत्य बोलते थे। 
रीना को भिखारी पर दया आ गयी।                        चुटकुला सुनकर हंसी आ गयी। 
2. जब समूहवाचक संज्ञाओं में शब्दों के साथ दल, वृन्द, गण, जन, जाति, समूह जोड़ दिया जाता हैं, तो इनका प्रयोग भी प्रायः एकवचन में होता है; जैसे -
जनता चुप बैठी थी।                                     कक्षा मैदान में खेलने चली गयी। 
सभा समाप्त हो गयी।                                  भीड़ चिल्लाने लगे।
3. धातुओं तथा पदार्थों का बोध कराने वाली द्रव्यवाचक संज्ञाओं का प्रयोग एकवचन में ही होता; जैसे -
मिट्टी सूख गयी है।                                       सोना महँगा हो रहा है। 
लोहा गरम हो गया था।                                 नल में पानी नहीं आ रहा था।  
विशेष  
  • कुछ शब्दों का प्रयोग हमेशा बहुवचन में होता है; आंसू, प्राण, समाचार, हस्ताक्षर, लोग, दर्शन, बाल आदि।
  • कुछ शब्दों का प्रयोग हमेशा एकवचन में होता है; जैसे- जनता, वर्षा, पानी, दूध, सत्य, झूठ, क्रोध, प्रजा, अमरुद, धरती, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा आदि। 
  • कुछ पुल्लिंग शब्द दोनों  में प्रायः समान होते हैं; जैसे- मकान, भवन, मुनि, गुरु, साधु, डाक, तपस्वी आदि।
बहुवचन बनाने के नियम   
1. अकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के '' को 'एँ' में बदलकर -
 एकवचन  बहुवचन  एकवचन  बहुवचन 
 रात  रातें  आँख  आँखें 
 कलम  कलमें  भेड़  भेड़ें 
 पुस्तक  पुस्तकें  दीवार  दीवारें 
 बात  बातें  बांह  बांहें 
 
2. इकारांत स्त्रीलिंग शब्दों में 'याँ' जोड़कर - 
 एकवचन बहुवचन  एकवचन बहुवचन 
 लकड़ी  लकड़ियाँ   लिपि  लिपियाँ 
 नदी  नदियाँ   नीति  नीतियाँ  
 रीति  रीतियाँ  विधि  विधियाँ 
 
3. ईकारांत स्त्रीलिंग शब्दों में '' को 'इयाँ' में बदलकर - 
 एकवचन  बहुवचन एकवचन  बहुवचन
 रानी  रानियाँ  तितली  तितलियाँ 
 देवी  देवियाँ  दवाई  दवाइयाँ 
 लड़की  लड़कियाँ  रोटी  रोटियाँ 
 मिठाई  मिठाईयाँ  गाड़ी  गाड़ियाँ 

4. आकारांत स्त्रीलिंग शब्दों में 'एँ' लगाकर -  
 एकवचन  बहुवचन एकवचन  बहुवचन
 आत्मा  आत्माएँ  कला  कलाएँ 
 सेना  सेनाएँ  छात्रा  छात्राएँ 
 शाखा  शाखाएँ   कविता  कविताएँ 
 गाथा  गाथाएँ   

5. 'या' को 'याँ'  में बदलकर 
 एकवचन  बहुवचन  एकवचन  बहुवचन 
 बिटिया  बिटियाँ  पुड़िया  पूड़ियाँ 
 कुटिया  कुटियाँ  खटिया  खटियाँ  
 चुहिया  चुहियाँ  चिड़िया  चिड़ियाँ 

 6. 'उकारांत', 'ऊकारांत' एवं 'औकारांत' स्त्रीलिंग शब्दों में 'एँ' जोड़कर ( '' अंत वाले शब्दों के '' को '' में बदल दिया जाता है ) -
 एकवचन  बहुवचन  एकवचन  बहुवचन 
 वस्तु  वस्तुएँ  लू  लुएं 
 वधू  वधुएँ  ऋतु  ऋतुएँ 
 धातु  धातुएं  गौ  गौएँ 

7. अन्य कुछ शब्दों के अंत में लोग, गण, वृन्द, वर्ग, जन और दल जोड़कर - 
 एकवचन  बहुवचन  एकवचन  बहुवचन 
 आप  आप लोग  मजदूर  मजदूरवर्ग 
 छात्र  छात्रगण  गुरु  गुरुजन 
 पक्षी  पक्षीवृन्द  टिड्डी  टिड्डी दल 

 

 कारक 

किसी वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा या सर्वनाम पदों का उस वाक्य की क्रिया से जो सम्बन्ध होता है, उसे कारक कहते है। कारक चिन्हों को परसर्ग या विभक्ति भी कहते हैं।  
कारक के भेद  :- कारक के निम्नलिखित आठ भेद होते हैं -
1. कर्ता कारक                 2. कर्म कारक                   3. करण कारक                        4. सम्प्रदान कारक 
5 . अपादान कारक          6. संबंध कारक                 7. अधिकरण कारक                 8. सम्बोधन कारक 

उपर्युक्त कारकों के लिए कुछ चिन्ह निश्चित हैं; जैसे -   
 कारक का नाम  विभक्ति चिन्ह    उदाहरण      
 कर्ता   ने  भव्य ने खाना खाया।   
 कर्म  को  राजीव ने हेमा को समाचार-पत्र दिया। 
 करण  से, के द्वारा  कुसुम द्वारा सब्जी बनाई गयी। 
 सम्प्रदान  को, के लिए  सुमित नानी के लिए फल लाया। 
 अपादान  से (अलग होना) पेड़ से पत्ता गिरा। 
 संबंध  का, की, के राम दशरथ के पुत्र थे। 
 अधिकरण  में, पर, पै  चिड़िया डाल पर बैठी है। 
 सम्बोधन  हे!, भो!, अरे! अरे! तुम मत बैठो। 
 
1. कर्ता कारक :- संज्ञा या  सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया को करने वाले (कर्ता) का बोध हो, उसे कर्ता कारक कहते हैं; जैसे-     गीता ने कविता सुनाई।                                     सुहानी ने गीत सुनाया। 

2. कर्म कारक :- वस्तु या व्यक्ति पर जिस क्रिया का प्रभाव पड़ने का बोध होता है, उसे कर्म कारक कहते हैं।  जैसे -      अभिषेक क्रिकेट खेलता है।                                       अध्यापिका ने बच्चों को लिखना सिखाया। 

3. करण कारक :- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के साधन का बोध हो, उसे करण कारक कहते हैं, जैसे-
मेरे पिताजी दफ्तर से घर जाते हैं।                                 हम हाथों से खाते हैं।  

4. सम्प्रदान कारक :- जिस संज्ञा या सर्वनाम के लिए क्रिया का होना पाया जाता है, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं; जैसे-     मैंने मोहन को पुस्तक दी।                              पिताजी हमारे लिए मिठाई लाये। 

5. अपादान कारक :- अपादान का अर्थ है - अलग होना।  संज्ञा सर्वनाम के जिस रूप से पृथक (अलग) होने का बोध होता है,  उसे अपादान कारक  कहते हैं; जैसे-  
किसान खेतों से लौट रहे हैं।                                          आसमान से ओले गिर रहे हैं। 

6. सम्बन्ध कारक :- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उनका सम्बन्ध वाक्य अन्य संज्ञा शब्दों से जाना जाये उस रूप को सम्बन्ध कारक कहते हैं; जैसे- 
यह पुस्तक तुम्हारी  है।                                      विनीत रमेश का बेटा है। 

7. अधिकरण कारक :- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के समय, स्थान, आधार आदि का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं; जैसे - 
लोग पार्क में टहल रहे हैं।                                  अध्यापक कक्षा में पढ़ा रहे हैं।  

8. सम्बोधन कारक :- जिस संज्ञा या सर्वनाम में का प्रयोग सम्बोधन के रूप में किया जाता है, उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं;   जैसे-
हे प्रभु! रक्षा करो।                                  अरे! आप आ गए। 

कर्म कारक और सम्प्रदान  कारक अंतर -  
 कर्म कारक में क्रिया का प्रभाव कर्म पड़ता है और सम्प्रदान कारक में कर्ता देने का कार्य करता है। दोनों कारकों में 'को' विभक्ति(चिन्ह) के कारण भूल की संभावना बानी रहती है; जैसे -
 शिक्षिका ने छात्रों को पढ़ाया।                   (कर्म कारक )
  माँ को पत्र दो।                                        (सम्प्रदान कारक)
विशेष :-  कर्म कारक में देने का कार्य नहीं होता, जबकि सम्प्रदान  होता है। 
      कर्म कारक में किसी के लिए कार्य नहीं किया जाता, जबकि सम्प्रदान में किया जाता है। 

करण कारक और अपादान में अंतर - 
करण कारक द्वारा कर्ता के कार्य करने के माध्यम का बोध होता है, जबकि अपादान कारक द्वारा ऐसा नहीं होता है;     जैसे- उसने रंगों से चित्रकारी की।                               श्याम घर से बाहर आ गया।     
 

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